निकाय चुनावः नए चेहरों ने मतदाताओं को डाला असमंजस में,जानिए वार्ड 1 के पार्षद प्रत्याशियों की कुंडली

रुद्रपुर। उत्तराखण्ड में निकाय चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इस दौरान हर तरफ चुनाव का शोर देखने को मिल रहा है। रुद्रपुर की बात करें तो यहां भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दलों से जुड़े प्रत्याशी और कार्यकर्ता दमखम के साथ मैदान में उतरकर अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं। खासकर पार्षद प्रत्याशी पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरे हुए हैं। लेकिन हैरानी की बात ये है कि कई जगहों पर ऐसे प्रत्याशी भी मैदान में उतरे हैं, जिनकी पकड़ जनता के बीच लगभग शून्य नजर आ रही है।
रुद्रपुर नगर निगम क्षेत्र के 40 वार्डों में कई प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतरे हैं और घर-घर जाकर मतदाताओं के रिझाने में लगे हैं, लेकिन कई जगहों पर वार्ड के लोग अपने पार्षद प्रत्याशी से पूरी तरीके से परिचित ही नहीं हैं। सबसे पहले रुद्रपुर नगर निगम क्षेत्र के वार्ड नंबर 1 की बात करते हैं। यह वार्ड रुद्रपुर नगर निगम का सबसे बड़ा वार्ड है। नगर निगम परिसीमन क्षेत्र में आने के बाद यह वार्ड अभी तक कांग्रेस के कब्जे में रहा है। इससे पहले भी कांग्रेस समर्पित प्रधान ने ही इस क्षेत्र का नेतृत्व किया, लेकिन इस बार इस वार्ड को ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षित किया गया है। जिसमें भाजपा और कांग्रेस के दो ही प्रत्याशी चुनावी मैदान में पार्षद बनने के लिए जोर आजमाइश में लगे हुए हैं। इस सीट से भाजपा ने पवन राणा को मैदान में उतारा है।
भाजपा प्रत्याशी-पवन राणा
शैक्षिक योग्यता- एम कॉम
व्यवसाय-व्यापार
पवन राणा मूल रूप से पहाड़ी समाज से ताल्लुक रखते हैं और शिमला बहादुर रुद्रपुर के स्थानीय निवासी हैं। पवन के परिवार के सदस्य देश की आर्मी और प्रदेश के पुलिस सेवा में कार्यरत रही है। वहीं पवन राणा एक रेस्टोरेंट के मालिक हैं और इसी के साथ कई और व्यापार से भी वह जुड़े हैं। पवन राणा लंबे समय से आरएसएस (संघ) से जुड़े हुए हैं और आरएसएस के विभिन्न पदों पर कार्य कर चुके हैं। इतना ही नहीं पवन राणा बेहद धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्तित्व हैं। वह प्रखर हिंदूवादी होने के साथ-साथ मेयर प्रत्याशी विकास शर्मा की तरह बालाजी के परम भक्त हैं। जानकारी के अनुसार वह हर महीने के आखिरी शनिवार को अपने आवास पर सुंदरकांड का पाठ भी करवाते हैं और इतना ही नहीं वो 2 सालों से वार्ड के हर एक मंदिर में मंगलवार को हनुमान चालीसा के पाठ का आयोजन करवाते हैं।
मबजूत पक्ष:
पवन राणा के मजबूत पक्ष की बात करें तो वह लंबे समय से आरएसएस से जुड़े हैं और संघ में रहकर सभी को एकजुट रखने व नेतृत्व करने की क्षमता उनमें खासी दिखाई देती है। यही नहीं एक ही पार्टी में लंबा अनुभव और पार्टी के बड़े पदाधिकारियों से नजदीकियां, कहीं न कहीं उन्हें इसका लाभ मिलता दिख रहा है। सामाजिक कार्यों में भी वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते आए हैं।
कमजोर पक्ष:
वही उनके कमजोर पक्ष पर नजर डाली जाए तो धरातल और जनता के बीच उनकी कम पकड़ सबसे बड़ी कमजोरी के रूप में देखी जा सकती है। आम कार्यकर्ताओं के बीच भी उनकी अच्छी-खासी पकड़ नहीं है, ऐसे में उन्हें ज्यादा पसीना बहाना पड़ सकता है।
कांग्रेस प्रत्याशी- रोहित कुमार चौहान
शैक्षिक योग्यता-ग्रेज्युट
व्यवसाय-व्यापार
वहीं अगर बात कांग्रेस प्रत्याशी की करें तो कांग्रेस की तरफ से इस सीट पर रोहित कुमार चौहान को मैदान में उतारा गया है। रोहित चौहान पूर्वांचल समाज से ताल्लुक रखते हैं और इनका परिवार आजादी के बाद से यहां का स्थानीय निवासी हैं। रोहित के दादाजी स्वतंत्रता सेनानी थे और उनके परिवार ने इस क्षेत्र को बसाने में अपनी अहम भूमिका अदा की है। साथ ही परिवार के लोगों के पास लंबे समय से राजनीतिक अनुभव है। लम्बे समय से रोहित का परिवार धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अहम भागीदारी निभाता आया है। रोहित चौहान पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि निर्दलीय चुनाव लड़ने के कारण वह वो चुनाव हार गए थे। वहीं इसके बाद पूर्व पार्षद सुरेश गौरी के नेतृत्व में रोहित ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। वहीं रोहित के परिवार के लोग पहले से ही कांग्रेस समर्पित रहे हैं।
मबजूत पक्ष:
उनके मजबूत पक्ष की बात करें तो स्थानीय युवाओं का उन्हें भरपूर समर्थन मिलता दिख रहा है। सालों से वार्ड एक में कांग्रेस का दबदबा होना और पूर्वांचल समाज में अच्छी पकड़ होना उनका प्लस प्वाइंट है। यही नहीं चर्चा है कि उन्हें अंदर खाने भाजपा के लोगों का समर्थन भी है।
कमजोर पक्ष:
वहीं कमजोर पक्ष की बात करें तो वह चुनाव के समय ही ज्यादा सक्रिय रहते हैं, ऐसे में जनता और कार्यकर्ताओं के बीच उनकी कमजोर पकड़ मानी जा रही है। यही नहीं बार-बार पार्टी बदलना भी उनके कमजोर पक्ष में आता है।
ऐसे में वार्ड एक से भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के पार्षद प्रत्यशियों की चुनावी नैया सीधे सीधे पार होना आसान नहीं है। अब यह देखना दिलचस्प होगा की कौन प्रत्याशी मतदाताओं के बीच अपनी मजबूत पकड़ पहले बनाता है।